कक्षा 12 हिन्दी Chapter 11 हँसते हुए मेरा अकेलापन | Bihar Board Hindi Chapter 11 (हँसते हुए मेरा अकेलापन ) Solutions class 12th hindi |
लेकख- मलयज
लेखक परिचय
जन्म- 1935 मृत्यु 26 अप्रैल 1982
जन्म स्थान- महूई, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मूलनाम- भरतजी श्रीवास्तव।
माता- प्रभावती और पिता- त्रिलोकी नाथ वर्मा।
शिक्षा- एम. ए. (अंग्रेजी), इलाहाबाद विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश।
विशेष: छात्र जीवन में क्षयरोग से ग्रसित। ऑपरेशन में एक फेफड़ा काटकर निकालना पड़ा। शेष जीवन में दुर्बल स्वास्थ्य और बार-बार अस्वस्थता के कारण दवाओं के सहारे जीते रहे।
कृतियाँ- कविता : जख्म के धूल, अपने होने को अप्रकाशित करता हुआ।
आलोचना : कविता से साक्षात्कार, संवाद और एकालाप।
सर्जनात्मक गद्य : हँसते हुए मेरा अकेलापन।
हँसते हुए मेरा अकेलापन
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ हँसते हुए मेरा अकेलापन एक डायरी है, जिसे मलयज के द्वारा लिखा गया है। मलयज अत्यंत आत्मसजग किस्म के बौध्दिक व्यक्ति थे। डायरी लिखना मलयज के लिए जीवन जीने के कर्म के जैसा था। डायरी की शुरूआत 15 जनवरी 1951 से शुरू होती है, जब उनकी आयु केवल 16 वर्ष की थी। डायरी लिखने का यह सिलसिला 9 अप्रैल 1982 तक चलता रहा, जब उन्होंने अंतिम साँस ली। अर्थात 47 साल तक के जीवन में 32 साल तक मलयज ने डायरी लिखी है। डायरी के ये पृष्ठ कवि-आलोचक मलयज के समय की उथल-पुथल और उनके निजी जीवन की तकलीफों-बेचैनियों के साथ एक गहरा रिश्ता बनाते हैं। इस डायरी में एक औसत भारतीय लेखक के परिवेश को आप उसकी समस्त जटिलताओं में देख सकते हैं।
मलयज ने डायरी के माध्यम से तारिख के माध्यम से विभिन्न जगहों का यर्थाथ चित्रण किया है। लेखक ने तारिख के साथ अपने जीवन के सभी घटनाओं का चित्रण किया है। यह पाठ में लेखक की डेढ़ हजार पृष्ठों में फैली हुई डायरीयों की एक छोटी सी झलक है।
रानीखेत
14 जुलाई 1956
सुबह से ही पेड़ काटे जा रहे हैं। मिलिट्री की छावनी के लिए ईंधन-पूरे सीजन और आगे आनेवाले जाड़े के लिए भी।
मौसम एकदम ठंडा हो गया है। बूँदा-बाँदी और हवा। एक कलाकार के लिए यह यह जरूरी है कि उसमें ‘आग‘ हो और और वह खुद ठंडा हो।
18 जून 1957
एक खेत की मेड़पर बैठी कौआ को देखकर कवि कहते हैं कि-
उम्र की फसल पककर तैयार-सोपानों का सुहाना रंग अब जर्द पड़ चला है। एक मधुर आशापूर्ण फल जिसने अनुभव की तिताई के छिलके उतार फेंके हैं।
4 जुलाई 1962: कौसानी
आज भी कोई चिट्ठी नहीं। तबियत किस कदर बेजार हो उठी है। दोपहर तक आशा रहती है कि कोई चिट्ठी आएगी पर भारी-भारी सी दोपहर बीत जाती है और कुछ नहीं होता। अजब सी बेचैनी मन में होती है।
दिल्ली 30 अगस्त 1976
सेब बेचती लड़की उसकी कलाइयों में इतना जोर न था कि वह चाकू से सेब की एक फाँक काटकर ग्राहक को चखाती। दो-चार बार उसने कोशिश की, फिर एक खिसियाई हुई हँसी हँसकर चाकू मेरे हाथ में थमा दिया और कहा खुद ही चख लो मिठे हैं सेब। सेब तो वैसे ही मिठे थे-उनका रेग और खुशबू देखकर उनकी किस्म पहले ही जान चुका था।
9 दिसम्बर 1978
जो कुछ लिखता हूँ वह सबका सब रचना नहीं होती । पृष्ठ तो और भी नहीं। जितना कुछ मैं भेगता हूँ उस सबमें रचना के बीज नहीं होते।
25 जुलाई 1980
इधर-पता नहीं कितने सालों से-मेरो जीवन का केंद्रीय अनुभव लगता है कि डर हैं मैं भीतर से बेतरह डरा हुआ व्यक्ति हुँ। इस डर के कई रूप हैं।
बुरी-बुरी बीमारीयों का डर-घर का जब भी कोई आदमी बीमार पड़ता है मुझे डर लगता है कि कहीं उसे कोई भयंकर बीमारी न लग गई हो और तब मैं क्या करूँगा-से किस अस्पताल में ले जाऊँगा, इलाज की कैसे व्यवस्था करूँगा।
इस डर से कितने-कितने घंटे मैंने तनाव में गुजारे हैं- एक पŸो कि तरह काँपते हुए, होठों में प्राथनाएँ बुदबुदाते हुए कि किसी तरह संकट का यह क्षण कटे।
मन इतना कमजोर हो गया है कि उसमें डर बड़ी आसानी से घुस जाता है।
हँसते हुए मेरा अकेलापन वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
Q 1.मलयज जी का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) दिल्ली
(ख) अहमदाबाद
(ग) आजमगढ़
(घ) छत्तीसगढ़
उत्तर-(ग)
Q 2.मलयज जी की मृत्यु हुई थी।
(क) 32 साल की उम्र में
(ख) 35 साल की उम्र में
(ग) 45 साल की उम्र में
(घ) 36 साल की उम्र में
उत्तर-(क)
Q 3.मलयज के पिता का नाम था।
(क) गणपति देव
(ख) त्रिलोकी नाथ
(ग) प्रभा शंकर
(घ) नीलकंठ
उत्तर-(ख)
Q 4.मलयज के माता का नाम था।
(क) मीरा
(ख) सीता
(ग) प्रभावती
(घ) सरस्वती
उत्तर-(ख)
Q 5.हँसते हुए मेरा अकेलापन के लेखक हैं
(क) भरत जी श्रीवास्तव
(ख) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(ग) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(घ) मोहन राकेश
उत्तर-(क)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
Q 1.हँसते हुए मेरा अकेलापन डायरी एक ……….. रचना है।
उत्तर- मलयज जी की
Q 2.उत्कृष्ठ मलयज जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से …….. एम. ए. किया।
उत्तर-अंग्रेजी में।
Q 3.मलयज जी की कविता और आलोचना से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है इनकी ………।
उत्तर-डायरियाँ
Q 4.एक कलाकार के एिल निहायत जरूरी है कि उसमें ……… हो और वह खुद ठंडा हो।
उत्तर-आग
Q 5.मलयज जी की सर्वोत्कृष्ट डायरी ……… की है।
उत्तर-3 मार्च, 1981 ई.
हँसते हुए मेरा अकेलापन अति लघु उत्तरीय प्रश्न
Q 1.मलयज किस दौर के कवि हैं? .
उत्तर-नई कविता के अन्तिम दौर के
Q 2.मलयज मन का कूड़ा किसे कहते हैं?
उत्तर-डायरी को
Q 3.मलयज किस कर्म के बिना मानवीयता को अधूरी मानते हैं?
उत्तर-रचनात्मक कर्म
Q 4.‘हँसते हुए मेरा अकेलापन’ किसकी कृति है?
उत्तर-मलयज की
Q 5.मलयज का मूल नाम क्या था?
उत्तर-भरत जी श्रीवास्तव
Q 6.“मैं संयत हूँ….पानी ठंडा’ किसके लिए कहा है?
उत्तर-लेखक ने स्वयं अपने लिए
हँसते हुए मेरा अकेलापन पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
Q 1.डायरी क्या है?
उत्तर-डायरी किसी साहित्यकार या व्यक्ति द्वारा लिखित उसके महत्वपूर्ण दैनिक अनुभवों का ब्योरा है जिसे वह बड़ी ही सच्चाई के साथ लिखता है। डायरी से जहाँ हमें लेखक के समय की उथल-पुथल का पता चलता है तो वहीं उसके निजी जीवन की कठिनाइयों का भी पता चलता है।
Q 2.डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है?
उत्तर-डायरी जीवन का दर्पण है। डायरी में शब्दों और अर्थों के बीच तटस्थता कम रहती है। डायरी में व्यक्ति अपने मन की बातों को कागज पर उतारता है। वह अपने यथार्थ को अपने ढंग से अपने समझने योग्य शब्दों में लिखता है। डायरी खुद के लिए लिखी जाती है, दूसरों के लिए नहीं। डायरी लिखने में अपने भाव के अनुसार शब्द नहीं मिल पाते हैं। यदि शब्दों का भंडार है भी तो उन शब्दों के लायक के भाव ही न होते हैं। डायरी में मुक्ताकाश भी होता है, तो सूक्ष्मता भी। शब्दार्थ और भावार्थ के आशिक मेल के कारण डायरी का लिखा जाना मुश्किल है।
Q 3.किस तारीख की डायरी आपको सबसे प्रभावी लगी और क्यों?
उत्तर-10 मई 1978 ई. की डायरी अतुलनीय है। यह डायरी मुझे बड़ी प्रभावी नजर आती है। इस डायरी में लेखक ने अपने यथार्थ के बारे में लिखा है। उन्होंने जीवन की सच्चाइयों से अपने को रूबरू बखूबी करवाया है। उन्होंने इस डायरी में स्पष्टतः यह दिखलाया है कि मनुष्य यथार्थ को जीता भी है, और इसका रचयिता भी वह स्वयं ही है। इसमें उन्होंने यह भी बताया है कि रचा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से बिल्कुल भिन्न है। हालांकि दोनों में एक तारतम्य भी है। इसमें उन्होंने संसार को यथार्थ के लेन-देन का एक नाम दिया है। वे संसार से जुड़ाव को रचनात्मक कर्म कहते हैं, जिसके ना होने पर मानवीयता ही अधूरी है। इस डायरी की एक मूल बात जो बड़ी गहराइयों को छूती है वह है रचे हुए यथार्थों का स्वतंत्र हो जाना।
Q 4.डायरी के इन अंशों में मलयज की गहरी संवेदना घुली हुई है। इसे प्रमाणित करें।
उत्तर-मलयज एक बेहद ही संवेनदनशील लेखक हैं। उनकी हर रचना चाहे कविता हो, आलोचमा हो या फिर डायरी उनकी संवेदनशीलता का परिचायक है। डायरी के इन अंशों में मलयज अपनी संवेदनशीलता का बखूबी परिचय देते हैं। इन डायरी के अंशों में उनकी संवेदनशीलता जगह-जगह जाहिर हुई है। खेत की मेड़ पर बैठी कौवों की कतार को देखना हो या फिर अकेलापन। नेगी परिवार की मेहमानबाजी की बात हो या फिर स्कूल के दो अध्यापकों से परिचय। अपने द्वारा रचे गए यथार्थ हो या फिर भोगे गए दिन। डायरी में लिखने के लिए चयनित शब्द हों या फिर सुरक्षा की भावना उनकी संवेदनशीलता का परिचय देती है। सेब बेचनेवाली लड़की की आतुरता और उसकी ललक मलयज की संवेदनशील निगाहें ही देख पाती है। आम जीवन में होनेवाले डर और दुनिया में जिजीविषा मलयज की गहरी संवेदना की छाप छोड़ती है।
Q 5.व्याख्या करें
(क) आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रचता भी है।
(ख) इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म है इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है।
उत्तर-(क) प्रस्तुत पंक्ति मलयज लिखित ‘हँसते हुए मेरा अकेलापन’ शीर्षक डायरी से ली गई है। प्रस्तत पंक्तियों में समर्थ लेखक मलयज के 10 मई 1978 की डायरी की है। जीवमात्र को जीने के लिए हमेशा संघर्ष करना पड़ता है। वह इन संघर्षों को जीता है। यदि संघर्ष ना रहे तो जीवन का कोई मोल ही न हो। मनुष्य इन यथार्थों के सहारे जीवन जीता है। वह इन यथार्थ का भोग भी करता है और भोग करने के दौरान इनकी सर्जना भी कर देता है। संघर्ष संघर्ष को जन्म देती है। कहा गया है गति ही जीवन है और जड़ता मृत्यु। इस प्रकार आदमी यथार्थ को जीता है।
भोगा हुआ यथार्थ दिया हुआ यथार्थ है। हर एक अपने यथार्थ की सर्जना करता है और उसका एक हिस्सा दूसरे को दे देता है। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। इसलिए यथार्थ की रचना सामाजिक सत्य की सृष्टि के लिए एक नैतिक कर्म है।।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति मलयज लिखित ‘हँसते हुए मेरा अकेलापन’ शीर्षक डायरी से ली गई है। प्रस्तुत पंक्ति के समर्थ लेखक मलयज के अनुसार मानव का संसार से जुड़ा होना निहायत जरूरी है। मानव संसार के अमानों का उपभोग करता है और उसकी सर्जना भी करता है। मानव अपने संसार का निर्माता स्वयं है। वह ही अपने संसार को जीता है और भोगता है। संसार में संक्ति ना होने पर कोई कर्म ही ना करे। कर्म करना जीवमात्र के अस्तित्व के लिए बहुत ही आवश्यक है। उसके होने की शर्त संसार को भोगने की प्रवृति ही है। भोगने की इच्छा कर्म का प्रधान कारक है। इस तरह संसार से संपृक्ति होने पर जीवमात्र रचनातमक कर्म की ओर उत्सुक होता है। इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है क्योंकि इसके बिना उसका अस्तित्व ही संशयपूर्ण है। .. प्रश्न
Q 6.‘धरती का क्षण’ से क्या आशय है?
उत्तर-लेखक कविता के मूड में जब डायरी लिखते हैं तो शब्द और अर्थ के मध्य की दूरी अनिर्धारित हो जाती है। शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदलते चले जाते हैं, एक दूसरे को पकड़ते-छोड़ते हुए। शब्द और अर्थ का जब साथ नहीं होता तो वह आकाश होता है जिसमें रचनाएँ बिजली के फूल की तरह खिल उठती हैं किन्तु जब इनका साथ होता है तो वह धरती का क्षण होता है और उसमें रचनाएँ जड़ पा लेती हैं प्रस्फुटन का आदिप्रोत पा जाती हैं। अतः यह कहना उचित है कि शब्द और अर्थ दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
Q 7.रचे हुए यथार्थ और भोगे हुए यथार्थ में क्या संबंध है?
‘उत्तर-भोगा हुआ यथार्थ एक दिया हुआ यथार्थ है। हर आदमी अपना-अपना यथार्थ रचता है और उस रचे हुए यथार्थ का एक हिस्सा दूसरों को दे देता है। हर आदमी उस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और भोगता है। रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वन्द्वात्मक रिश्ता है। एक के होने से ही दूसरे का होना है। दोनों की जड़ें एक-दूसरे में हैं और वहीं से वे अपना पोषण रस खींचते हैं। दोनों एक-दूसरे को बनाते तथा मिटाते हैं।
Q 8.लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है? वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर-लेखक मलयज डायरी लेखन को सुरक्षित नहीं मानता है। लेखक इस बात से सहमत नहीं कि हम यथार्थ से बचने के लिए डायरी लिखें और अपने कर्तव्य का इतिश्री समझें। यह तो वास्तविकता से मुँह मोड़ना हुआ। यह पलायन है, कायरता है। हम यह नहीं कह सकते कि हम अपनी गलतियों, अपनी पराजय को डायरी लिखकर छिपा सकते हैं। यह एक छद्म आवरण की भाँति होगा, जिसे रोशनी की एक लकीर भी तोड़ सकता है।
लेखक के अनुसार सुरक्षा इन चुनौतियों को जीने में है। जीवन के खट्टे स्वादों से बचने के लिए हम अपनी जीभ काट लें यह कहाँ की चतुरता है, इससे तो हम मोटे स्वाद से भी वंचित हो जाएँगे। सुरक्षा कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करने में है, अपने को बचाने में नहीं। लेखक डायरी को मुसीबतों से बिना लड़े पलायन किए जाने के रूप में देखता है।
Q 9.डायरी के इन अंशों से लेखक के जिस ‘मूड’ का अनुभव आपको होता है, उसका परिचय अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत डायरी हँसते हुए मेरा अकेलापन शीर्षक डायरी में लेखक के कई मूड हमें परिलक्षित होते दिखाई देते हैं। लेखक ने स्वयं डायरी लिखने के पूर्व कहा है-“डायरी लेखन मेरे लिये एक दहकता हुआ जंगल है, एक तटस्थ घोंसला नहीं…….। डायरी मेरे कर्म की साक्षी हो, मेरे संघर्ष की प्रवक्ता हो यही मेरी सुरक्षा है।
मलयज प्रकृति के प्रति अपनी भावना (मूड) डायरी के प्रथम अंश में ही प्रस्तुत करता है। पेड़ों की हरियाली के बीच अधसुखे पेड़ों का कटना बाहर निकलने पर सफेद रंग के कुहासे का सामना करना, ये सारी बातें स्पष्ट करती हैं कि एक कलाकार के लिये यह निहायत जरूरी है कि उसमें आग हो ‘और खुद………ठंढा’ हो।
मलयज कभी-कभी चित्रकार के मूड में दिखाई देते हैं। खेत और फसल की चर्चा करते हुए उन्होंने मानव जीवन के कई पहलुओं-बचपन, युवावस्था, बुढ़ापा का अकेलापन किया है जिस प्रकार फसल उगते बढ़ते हैं, फलते और पकते तथा बाद में उनकी कटाई की जाती है यही स्थिति. मनुष्य की भी है। लेखक यहाँ कवि हृदय के मूड में दिखाई देते हैं। लेखक का मूड जीवन की यथार्थ अनुभूति का भी अनुभव करने से नहीं चूकता।
उनका कहना है-रचा हुआ यथार्थ, भोगे हुए यथार्थ से अलग है। शीघ्र ही उनका मूड बदलता है और वे लिखते हैं, कि संसार में जुड़ाव एक रचनात्मक कर्म है। रचना और भोग को वे एक-दूसरे को पूरक मानते हैं। उनके अनुसार मन का डर बड़ा ही खतरनाक है। डरा व्यक्ति अपने कर्तव्य पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। अतः निर्भय होना ही मनुष्य की प्रगति का कारण बनता है। इस प्रकार लेखक ने अपने कई मूडों का प्रदर्शन इस डायरी के अंश में किया है, जिसका अनुभव पाठकों को सहज ही होता है।
Q 10.अर्थ स्पष्ट करें-एक कलाकार के लिये निहायत जरूरी है कि उसमें ‘आग’ हो-और खुद ठंढा हो।
उत्तर-लेखक मलयज ने अपनी डायरी में एक कलाकार की मनोदशा का चित्रण प्रस्तुत पंक्ति में की है। लेखक का कहना है कि एक कलाकार के लिए जरूरी है उसके दिल में आग हो। उसमें कुछ कर गुजरने की क्षमता हो। साथ ही, एक कलाकार दिमाग से शांत प्रकृति का होता है। एक कलाकार के लिए ठंढे दिमाग का व्यक्ति होना अनिवार्य है। एक कलाकार का सही चित्रण लेखक ने यहाँ किया है।
Q 11.चित्रकारी की किताब में लेखक ने कौन सा रंग सिद्धान्त पढ़ा था?
उत्तर-चित्रकारी की किताब में लेखक ने यह रंग सिद्धांत पढ़ा था कि शोख और भड़कीले रंग संवेदनाओं को बड़ी तेजी से उभारते हैं, उन्हें बड़ी तेजी से चरम बिन्दु की ओर ले जाते हैं और उतनी ही तेजी से उन्हें ढाल की ओर खींचते हैं।
Q 12.11 जून 78 की डायरी से शब्द और अर्थ के संबंध पर क्या प्रकाश पड़ता है? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-शब्द और उसके अर्थ किसी भी रचना के मापदण्ड हैं। यदि शब्द-अलग हों उनके भाव कुछ और तो यह लेखक का पांडित्य को दर्शाता है, परन्तु सामान्य पाठक लेखक की बात को नहीं समझ पाता है। डायरी में चूँकि लेखक अपने यथार्थ की बात लिखता है, इसलिए शब्दों और अर्थों में तटस्थता कम रहती है, इस कारण डायरी लिखना कठिन भी है। यदि अर्थ शब्द के साथ चलते हैं तब रचना सामान्य जन की होती है हालांकि उसका विस्तार सीमित होता है जो रचना की उत्पत्ति का आदि स्रोत है। यदि अर्थ और शब्द साथ-साथ नहीं चलते हैं तो रचना एक उन्मुक्त आकाश की भाँति हो जाती हैं, जिसमें पाठक उसे अपनी परिकल्पनाओं के अनुसार समझता है।
Q 13.रचना और दस्तावेज में क्या फर्क है? लेखक दस्तावेज को रचना के लिए कैसे जरूरी बताता है?
उत्तर-दस्तावेज रचना के लिए जरूरी कच्चा माल है। दस्तावेज वे तथ्य हैं जिनके आधार पर किसी रचना का जन्म होता है। वे सारी घटनाएँ, परिस्थितियों, हमारे जीवन का भोग-अनुभव दस्तावेज के घटक हैं और रचना के कारक, बिना दस्तावेज के रचना का हमारे जीवन से कोई सरोकार ही नहीं है, इसलिए रचना का कोई मोल नहीं है। इस तरह रचना के लिए दस्तावेज बहुत जरूरी है।
रचना हमारी सोच की एक क्षितिज प्रदान करती हैं। ये एक माध्यम हैं, उन परिस्थितियों से जूझने का। दस्तावेज परिस्थितियों, घटनाएँ या अनुभव होती हैं, इसलिए इन्हें केवल परिष्कृत दिमाग ही पहचान पाता है लेकिन जब यही रचना का रूप ले लेता है, तब यह जन के लिए हो जाता है।
Q 14.लेखक अपने किस डर की बात करता है? इस डर की खासियत क्या है? अपने शब्दों में लायरी में दो तरह के डर का प्रयजनों को खोने का
उत्तर-लेखक डायरी में दो तरह के डर की बात करता है–पहला डर है आर्थिक और दूसरा डर है सामाजिक प्रतीक्षा का डर। लेखक अपने प्रियजनों को खोने का डर आर्थिक तंगी की वजह से बताने के लिए बड़ी चतुराई से बीमारियों का सहारा लिया है। वह कहता है कि मने अपने प्रियजनों के बीमार हो जाने की बात सोचकर भय से काँप उठता है। इलाज की व्यवस्था का डर उसे भयानक तनाव में ला देता है। दूसरे डर में लेखक ने चतुरतापूर्वक समाज में बढ़ते अपराधों का जिक्र किया है। वह कहता है कि यदि कोई प्रियजन संभावित घड़ी तक नहीं हैं, तो मन अनजानी, अप्रिय आशंकाओं से घिर उठता है। इस डर की खासियत यह है कि मन की कमजोरी इस डर का कारक है। मन की कमजोरी ही सामाजिक और आर्थिक अपराधों की जड़ है।
हँसते हुए मेरा अकेलापन भाषा की बात
Q 1.अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित वाक्यों की प्रकृति बताएँ
(क) मौसम एकदम से ठंढा हो गया है।
(ख) हवाओं में ये कैसी महक हैं।
(ग) आज की कोई चिट्ठी नहीं।
(घ) तबीयत किस कदर बेजार हो उठी है।
(ङ) सुरक्षा डायरी में भी नहीं।
(च) मेरे भीतर इन दिनों कितने शब्द भरे पड़े हैं या अर्थ?
उत्तर-(क) विधिवाचक वाक्य
(ख) प्रश्नवाचक वाक्य
(ग) विस्मयादिबोध वाक्य
(घ) विधिवाचक वाक्य
(ङ) निषेधवाचक वाक्य
(च) विधिवाचक वाक्य
Q 2.नीचे लिखे वाक्यों से सरल, मिश्र एवं संयुक्त वाक्यों को छाँटें
(क) हर आदमी उस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और भोगता है।
(ख) आदमी यथार्थ जीता ही नहीं, यथार्थ को रचता भी है।
(ग) सुबह से ही पेड़ काटे जा रहे हैं।
(घ) कल शाम से रोज इसी समय एक बहुत प्यारी-सी गंध हवा में उड़कर मेरे दरवाजे तक आती है।
उत्तर-(क) संयुक्त वाक्य
(ख) मिश्र वाक्य
(ग) सरल वाक्य
(घ) संयुक्त वाक्य।
Q 3.उत्पत्ति की दृष्टि से निम्नलिखित शब्दों की प्रकृति बताएँ
अस्फुट, मौसम, निहायत, गुलदान, संयत, रूदन, आग, मेड़, जर्द, महक, स्फूर्ति, गुंजाइश, चढ़ाई, सत्य, यथार्थ, रिश्ता, मुश्किल, घोंसला।
उत्तर-
- अस्फुट – तद्भव
- मौसम – विदेशज
- निहायत – विदेशज
- गुलदान – विदेशज
- संयत – तत्सम
- रूदन – तद्भव
- आग – तद्भव
- मेंड़ – देशज
- जर्द – विदेशज
- महक – विदेशज
- स्फूर्ति – तद्भव
- गुंजाइश – विदेशज
- चढ़ाई – देशज
- सत्य – तत्सम
- सुरक्षा – तत्सम
- रिश्ता – विदेशज
- मुश्किल – विदेशज
- घोंसला – तद्भव
हँसते हुए मेरा अकेलापन लेखक परिचय मलयज (भरतजी श्रीवास्तव) (1935-1982)
जीवन-परिचय-
‘नई कविता’ के अन्तिम दौर के प्रमुख कवि ‘मलयज’ का जन्म सन् 1935 में महुई, आजमगढ़, उत्तरप्रदेश में हुआ। इनका मूलनाम भरतजी श्रीवास्तव था। इनके पिता का नाम त्रिलोकीनाथ वर्मा तथा माता का नाम प्रभावती था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त की। फिर इन्होंने उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया। अपने छात्र जीवन में ये क्षयरोग से ग्रस्त हो गए थे। इस कारण ऑपरेशन में इन्हें अपना एक गुर्दा खोना पड़ा तथा शेष जीवन भी दवाइयों के सहारे गुजारना पड़ा। ये स्वभाव से अंतर्मुखी, गंभीर, एकांतप्रिय तथा मितभाषी थे।
प्रायः अवसादग्रस्त रहने के बावजूद ये कठिन जिजीविषाधर्मी थे। ड्राइंग तथा स्केचिंग, संगीत, कला, प्रदर्शनी एवं सिनेमा में इनकी गहरी रुचि थी। इन्होंने कुछ दिनों तक के. पी. कॉलेज, इलाहाबाद में प्राध्यापन भी किया। वहीं सन् 1964 में कृषि मंत्रालय, भारत सरकार की अंग्रेजी पत्रिकाओं के संपादकीय विभाग में भी नौकरी की। शमशेर बहादुर सिंह और विजयदेव नारायण साही से इनके विशिष्ट संपर्क थे।
इन्होंने डायरी लेखन को जीवन जीने के जैसे अपना रखा था। ये 16 वर्ष की आयु से डायरी लेखन करने लगे थे तथा अपने जीवन के अन्तिम काल तक डायरी लेखन करते रहे। इनके डायरी लेखन में जहाँ निजी जीवन की स्थितियों का वर्णन है, तो वहीं उस समय की उथल-पुथल का भी चित्रण है। इस प्रतिभाशाली तथा संवेदनशील कवि-आलोचक का निधन 26 अप्रैल, सन् 1982 के दिन हुआ।
रचनाएँ-मलयज की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कविता-जख्म पर धूल (1971), अपने होने को अप्रकाशित करता हुआ (1980)।
आलोचना-कविता के साक्षात्कार (1979), संवाद और एकालाप (1984), रामचन्द्र शुक्ल (1987)।
सृर्जनात्मक गद्य-हँसते हुए मेरा अकेलापन (1982)।
डायरी-तीन खंड, संपादक : डॉ. नामवर सिंह संपादन-‘शमशेर’ पुस्तक का सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के साथ सह-संपादन।
साहित्यिक विशेषताएँ-सन् 1960 के आसपास मलयज का उदय एक कवि के रूप में हुआ। आरंभ में वे भाषा, संवेदना और रचना-शैली में नई कविता के परवर्ती रूपों के प्रभाव में थे। लेकिन बाद में होने वाले परिवर्तनों के कारण उनके लेखन में काफी बदलाव आया वहीं उनकी आलोचना का विकास हुआ जो हिन्दी साहित्य में आठवें दशक की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
हँसते हुए मेरा अकेलापन पाठ के सारांश
“हँसते हुए मेरा अकेलापन” शीर्षक डायरी मलयज की एक उत्कृष्ट रचना है। मलयज अत्यन्त आत्मसजग किस्म के बौद्धिक व्यक्ति थे। डायरी लिखना मलयज के लिए जीवन जीने ‘के कार्य जैसा था। ये डायरी मलयज के समय की उथल-पुथल और उनके निजी-जीवन की तकलीफों बेचैनियों के साथ एक गहरा रिश्ता बनाते हैं। इस डायरी में एक औसत भारतीय लेखक के परिवेश को हम उसकी समस्त जटिलताओं में देख सकते हैं।
हँसते हुए मेरा अकेलापन पाठ्य-पुस्तक
में प्रस्तुत डायरी के अंश की प्रथम डायरी में मलयज ने प्रकृति एवं मानव के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। मिलिट्री की छावनी में वृक्ष काटे जा रहे हैं। लेखक वृक्षों के एक गिरोह में उनकी एकात्मकता का संकेत देता है। वृक्षों का चित्रण करते हुए मलयज लिखते हैं-“वे जब बोलते हैं, तब एक भाषा में गाते हैं, तब एक भाषा में रोते हैं तब भी एक भाषा में……।” लेखक ने जाड़े के मौसम में घने कुहरों का सजीव चित्र अपनी डायरी में प्रस्तुत किया है। साथ ही, ऐसे ठंडे मौसम में भी कलाकार के हृदय में आग है लेकिन उसका दिमाग ठंढा है। डायरी में लिखा है-“एक कलाकार के लिए यह निहायत जरूरी है कि उसमें ‘आग’ हो और वह खुद ठंढा हो।”
दूसरे दिन की डायरी में लेखक ने मनुष्य के जीवन की तुलना खेती की फसलों से की है। मनुष्य का जीवन फसल के समान बढ़ता, पकता एवं कटता दिखायी देता है। तीसरे दिन की डायरी में लेखक ने चिट्ठी की उम्मीद में और चिट्ठी नहीं आने पर अपनी मनोदशा का वर्णन किया है। चिट्ठी नहीं आने पर एक अजीब-सी बेचैनी मन में आती है। चौथी डायरी में लेखक ने लेखक बलभंद्र ठाकुर नामक एक लेखक का चित्रण किया है और बताने का प्रयास किया है कि एक लेखक कितना सरल एवं मिलनसार होता है। अपनी रचनाओं पर लेखक को गर्व होता है, उसका सहज चित्र इस डायरी में प्रस्तुत है। कौसानी में कुछ दिनों तक लेखक का प्रवास बड़ा ही आनन्ददायक रहा। दो शिक्षकों का चित्रण उनके सहज एवं सामाजिक स्वभाव को दिखाया गया है। पाँचवीं डायरी में भी लेखक ने कौसानी के प्राकृतिक एवं शांत वातावरण का चित्रण किया है।
छठी डायरी में मलयज ने एक सेब बेचनेवाली किशोरी का चित्रण बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया है। किशोरी इतनी भोली थी कि सेब बेचने में उसका भोलापन परिलक्षित होता है। सातवीं डायरी में मलयज यथार्थवादी दिखायी देते हैं। उनके अनुसार मनुष्य यथार्थ को रचता भी है और यथार्थ में जीता भी है। उनके अनुसार रचा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से अलग है। बाल-बच्चे रचे हुए यथार्थ हैं। वे सांसारिक वस्तुओं का भोग करते हैं। मलयज ने लिखा है-“हर आदमी उस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और भोगता है। आदमी के होने की शर्त यह रचता जाता, भोगा जाता संसार ही है।” उनके अनुसार रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वन्द्वात्मक रिश्ता है।
आठवीं डायरी में लेखक ने शब्द एवं अर्थ के बीच निकटता का वर्णन किया है। लेखक का कहना है शब्द अधिक होने पर अर्थ कमने लगता है और अर्थ की अधिकता में शब्दों की कमी होने लगती है। अर्थात् शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदले चले जाते हैं। नवी डायरी में लेखक ने सुरक्षा पर अपना विचार व्यक्त किया है। व्यक्ति की सुरक्षा रोशनी में हो सकती है, अँधेरे में नहीं। अँधेरे में सिर्फ छिपा जा सकता है। सुरक्षा तो चुनौती को झेलने में ही है, बचाने में नहीं। अतः आक्रामक व्यक्ति ही अपनी सुरक्षा कर सकता है। बचाव करने में व्यक्ति असुरिक्षत होता है।
दसवीं डायरी में लेखक ने रचना और दस्तावेज में भेद एवं दोनों में पारस्परिक संबंध की चर्चा की है। लेखक के अनुसार दस्तावेज रचना का कच्चा माल है। दस्तावेज रचनारूपी करेंसी के वास्तविक मूल्य प्रदान करनेवाला मूलधन है। ग्यारहवीं डायरी में लेखक ने मन में पैदा होनेवाले डर का वर्णन किया है। लेखक अपने को भीतर से डरा हुआ व्यक्ति मानता है। मन का हर तनाव पैदा करता है, संशय पैदा करता है। किसी की प्रतीक्षा की घड़ी बीत जाने पर मन में डर पैदा होता है। डर कई प्रकार के होते हैं। मनुष्य जैसे-जैसे जीवनरूपी समस्याओं से घिरता जाता है, उसके मन में डर की मात्र भी बढ़ती जाती है।
अन्तिम डायरी में लेखक ने जीवन में तनाव के प्रभाव का वर्णन किया है। मनुष्य जीवन में संघर्षों का सामना करते समय तनाव से भरा रहता है।
इस प्रकार प्रस्तुत डायरी के अंश में मलयज ने अपने जीवन के संघर्षों एवं दुखों की ओर इशारा करते हुए मानव जीवन में पाये जानेवाली सहज समस्याओं का चित्रण बड़ी ही कुशलता से किया है। एक व्यक्ति को कितना खुला, ईमानदार और विचारशील होना चाहिए-इस भाव का सहज चित्रण लेखक ने अपनी डायरी में प्रस्तुत किया है। व्यक्ति के क्या दायित्व हैं और अपने दायित्वों के प्रति कैसा लगाव, कैसी सान्निध्यता होनी चाहिए ये सारे भाव प्रस्तुत डायरी में स्पष्ट रूप से चित्रित हैं।