कक्षा 12 हिन्दी Chapter 7 ओ सदानीरा | Bihar Board Hindi Chapter 7 (एक लेख और एक पत्र) Solutions class 12th hindi |
लेखक- जगदीशचन्द्र माथुर
लेखक परिचय
जन्म-16 जुलाई 1917 निधन- 14 मई 1978
जन्म स्थान- शाहजहाँपुर उत्तरप्रदेश
शिक्षा- एम.ए (अंग्रेजी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय | 1941 में आई. सी. ए परीक्षा उत्तीर्ण | प्रशिक्षण के लिए अमेरिका गए और बाद में शिक्षा सचिव हुए |
सम्मान – विद्या वारिधि की उपाधि से विभूषित, कालिदास अवार्ड और बिहार राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित।
कृतियाँ- मेरी बांसुरी, भोर का तारा, ओ मेरे सपने, कोणार्क, बंदी, शारदीया, पहला राजा, दशरथ नन्दन, कुंवर सिंह की टेक, गगन सवारी, दस तस्वीरें।
ओ सदानीरा निबंध का सारांश
प्रस्तुत निबंध “ओ सदानीरा” जगदीश चन्द्र माथुर द्वारा लिखी पुस्तक ”बोलते क्षण” से लिया गया है जिसमें उन्होंने गंडक नदी और उसके किनारे की संस्कृति और जीवन प्रवाह को दिखाया है।
गंडक चंपारण में बहने वाली नदी है जो अपना बहाव क्षेत्र और रास्ता बदल लिया करती है। भगवान बुद्ध के समय में इस क्षेत्र में घना जंगल था जिससे पानी वृक्ष की जड़ों में रुका रहता था। बाढ़ आती थी लेकिन इतना प्रचंड नहीं आती थी। एक बार गयासुद्दीन तुगलक ने हरिसिंह देव पर आक्रमण करने के लिए जंगलों को काटा तब से जंगल कटते चले गए।
गंडक प्राचीन और अतीत के बीच की कड़ी है।बहुत से महात्माओं और संतों ने इसके किनारे तप और तेज पाया होगा लेकिन गंडक कभी गंभीर नहीं बन सकी जिसके कारण इसके किनारे पर तीर्थस्थल भी स्थायी नहीं रह सके।
गंडक ने कोई स्मृतियाँ नहीं छोड़ी। भवन, मंदिर घाट कुछ भी नहीं। हवाई जहाज से देखने पर गंडक घाटी के दोनों ओर बहुत सारे ताल दिखाई पड़ते है। जिनमें से एक सरैयामन ताल है जिसके चारों और काफी बड़ा जंगल है और इसके बीच में द्वीप भी है। गंडक नदी का जल सदियों से चंचल रहा है। इसने कई तीर्थ तोड़े है जो अब खंडहर दिखाई पड़ते है।
भैसालोटन में भारतीय इंजीनीयर जंगल के बीच निर्माण कार्य कर रहे है। ये नहरें लेखक को नारायण की भुजाएँ प्रतीत होती है और बिजली के तारों का जाल उनका चक्र प्रतीत हो रहा है। लेखक मन ही मन इंजीनीयरों को, मजदूरों को नमस्कार करता है।
लेखक कहते हैं ओ सदानीरा ! ओ चक्रा ! ओ नारायणी ! ओ महागंडक ! युगों से दीन-हीन जनता तुम्हें इन नामों से संबोधित करती रही है लेकिन तेरी चॅचल धारा ने आराधना के कसूमों को ठूकरा दिया है लेकिन अब जिस मंदिर का निर्माण हो रहा है उसकी नींव बहुत गहरी है जिसे तू ठूकरा नहीं पाएगी।
पुत्र वियोग वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ–
Q 1.‘मुकुल’ त्रिधारा आदि सुभद्रा कुमारी चौहान की कैसी कृतियाँ हैं?
(क) काव्य कृतियाँ
(ख) नाट्य कृतियाँ
(ग) कहानी–संग्रह
(घ) एकांकी–संग्रह
उत्तर-(क)
Q 2.सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब हुआ था?
(क) 16 अगस्त, 1904 ई.
(ख) 18 अगस्त, 1910 ई.
(ग) 15 अगस्त, 1902 ई.
(घ) 20 अगस्त, 1915 ई.
उत्तर-(क)
Q 3.सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी कविता कौन–सी है?
(क) प्यारे–नन्हें बेटे को
(ख) पुत्र–वियोग
(ग) हार–जीत
(घ) गाँव का घर
उत्तर-(ख)
Q 4.माँ के लिए अपने मन को समझाना कब कठिन हो जाता है?
(क) घन नष्ट होने पर
(ख) पुत्र मृत्यु पर
(ग) पति मृत्यु पर
(घ) पिता मृत्यु पर
उत्तर-(ख)
Q 5.“बिखरे मोती समा के खेल’ सुभद्रा कुमारी चौहान की कौन–सी कृतियाँ हैं?
(क) कहानी–संग्रह
(ख) उपन्यास
(ग) संस्मरण
(घ) आलोचना
उत्तर-(क)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
Q 1.मेरा खोया हुआ………..।
अबतक मेरे पास न आया।
उत्तर-खिलौना
Q 2.आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास……… पर छाया।
उत्तर-विश्व
Q 3.शीत न लग जाए, इस भय से
नहीं ……… से जिसे उतारा।
उत्तर-गोद
Q 4.छोड़ काम दौड़ कर आई,
………. कहकर जिस समय पुकारा।
उत्तर-‘माँ’
Q 5.……… दे दे जिसे सुलाया,
जिसके लिए लोरियाँ गाई।
उत्तर-थपकी
पुत्र वियोग अति लघु उत्तरीय प्रश्न
Q 1.कवयित्री स्वयं को असहाय क्यों कहती है?
उत्तर-पुत्र वियोग के कारण।
Q 2.सुभद्रा कुमारी चौहान का खिलौना क्या है?
उत्तर-उसका पुत्र।
Q 3.माँ के लिए अपने मन को समझाना कब कठिन हो जाता है?
उत्तर-पुत्र की मृत्यु पर।
Q 4.सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी कविता कौन–सी है?
उत्तर-पुत्र वियोग।
पुत्र वियोग पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
Q 1.कवयित्री का खिलौना क्या है?
उत्तर-कवयित्री का खिलौना उसका बेटा है। बच्चों को खिलौना प्रिय होता है। उसी प्रकार कवयित्री माँ के लिए उसका बेटा उसके जीवन का सर्वोत्तम उपहार है। इसलिए वह कवयित्र का खिलौना है।
Q 2.कवयित्री स्वयं को असहाय और विवश क्यों कहती है?
उत्तर-कवयित्री स्वयं को असहाय तथा विवश इसलिए कहती है कि उसने अपने बेटे की देख–भाल तथा उसके लालन–पालन पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर दिया। अपनी सुविधा असुविधा का कभी विचार नहीं किया। बेटा को ठंढ न लग जाए बीमार न पड़ जाए इसलिए सदैव उसे गोदी में रखा। इन सारी सावधानियों तथा मन्दिर में पूजा–अर्चना से वह अपने बेटे की असमय मृत्यु नहीं टाल सकी। नियमि के आगे किसी का वश नहीं चलता। अतः, वह स्वयं को असहाय तथा बेबस माँ कहती है।
Q 3.पुत्र के लिए माँ क्या–क्या करती है?
उत्तर-पुत्र के लिए माँ निजी सुख–दुख भूल जाती है। उसे अपनी सुख–सुविधा के विषय में सोचने की अवकाश नहीं रहता। वह बच्चे के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का पूरा ध्यान रखती है। बेटा को ठंढ़ न लग जाए अथवा बीमार न पड़ जाए, इसके लिए उसे सदैव गोद में लेकर उसका.. मनोरंजन करती रहती है। उसे लोरी–गीत सुनाकर सुलाती है। उसके लिए मन्दिरों में जाकर पूजा–अर्चना करती है तथा मन्नतें माँगती है।
Q 4.अर्थ स्पष्ट करें–
आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया।
उत्तर-आज सभी दिशाएँ पुलकित हैं, सर्वत्र प्रसन्नता छाई हुई है। सारे विश्व में उल्लास का वातावरण है। किन्तु मेरा (कवयित्री) खोया हुआ खिलौना अब मुझे प्राप्त नहीं हुआ। अर्थात् कवयित्री के पुत्र का निधन हो गया है। इस प्रकार वह उससे (कवयित्री) छिन गया है। यह उसकी व्यक्तिगत क्षति है। विश्व के अन्य लोग हर्षित हैं। सभी दिशाएँ भी उल्लासित (प्रमुदित) दिख रही हैं। किन्तु कवयित्री ने अपना बेटा खो दिया है। उसकी मृत्यु हो चुकी है। वह उद्विग्न है शोक विह्वल है। अपनी असंयमित मनोदशा में वह बेटा के वापस आने की प्रतीक्षा करती है और नहीं लौटकर आने पर निराश हो जाती है।
Q 5.माँ के लिए अपना मन समझाना कब कठिन है और क्यों?
उत्तर-माँ के लिए अपने मन को समझाना तब कठिन हो जाता है, जब वह अपना बेटा खो देती है। बेटा माँ की अमूल्य धरोहर होता है। बेटा माँ की आँखों का तारा होता है। माँ का सर्वस्व यदि क्रूर नियति द्वारा उससे छीन लिया जाता है उसके बेटे की मृत्यु हो जाती है तो माँ के लिए अपने मन को समझाना कठिन होता है।
Q 6.पुत्र को ‘छौना’ कहने से क्या भाव हुआ है, इसे उद्घाटित करें।
उत्तर-‘छौना’ का अर्थ होता हे हिरण आदि पशुओं का बच्चा ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता में कवयित्री ने ‘छौना’ शब्द का प्रयोग अपने बेटा के लिए किया है। हिरण अथवा बाघ का बच्चा बड़ा भोला तथा सुन्दर दिखता है। इसके अतिरिक्त चंचल तथा तेज भी होती है। अतः, कवयित्री द्वारा अपने बेटा को छौना कहने के पीछे यह विशेष अर्थ भी हो सकता है।
Q 7.मर्म उद्घाटित करें–
भाई–बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलाये
किन्तु रात–दिन की साथिन माँ
कैसे अपना मन समझाएँ।
उत्तर-भाई तथा बहिन, अपने भाई को भूल जा सकते हैं। पिता भी अपने बेटे को विस्मृत कर सकता है, पर उसकी ममतामयी माँ जो सदैव उसके पास रहती है, गोद में लेकर मन बहलाती है। उसको सुलाने के लिए लोरी गीत सुनाती है, वह माँ अपने बेटा को नहीं भूल सकती है। वह तो सदैव एक सच्चे साथी के समान, उसके पास सदैव रही है। उसको दिन रात गोदी में लेकर मन बहलाती रही है। अतः, वे बेटा को मौत के बाद अपने मन को कैसे समझाए।
Q 8.कविता का भावार्थ संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता में अपने बेटे की मौत के बाद उसकी शोकाकुल माँ के मन में उठनेवाले अनेक निराशाजनक तथा असंयमित विचार तथा उससे उपजी विषादपूर्ण मन:स्थिति का उद्घाटित किया गया। कवयित्री अपने बेटे के आकस्मिक तथा अप्रत्याशित निधन से मानसिक तौर पर अशान्त है। वह अपनी विगत स्मृतियों को याद कर उद्विग्न है। एक माँ के हृदय में उठनेवाले झंझावत की वह स्वयं भुक्तभोगी है। कविता में कवयित्री द्वारा नितांत मनोवैज्ञानिक तथा स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
बेटा की मौत से कवयित्री विषाद के गहरे सदमे में डूबी है–उसका प्यारा बेटा अब उसे दूर चला गया है। उसने उसे दिन–रात गोद में लेकर ठंड तथा रोग से बचाया, लोरियाँ सुनाकर उसे सुलाया। उसके लिए मंदिरों में पूजा–अर्चना की, मन्नतें मांगी। किन्तु ये सारे प्रयास निरर्थक हो गए। अब वह दुखी माँ एक पल के लिए भी अपने बेटा का मुख देखना चाहती है उसे अपनी छाती से चिपकाकर स्नेह को वर्षा करना चाहती है, उससे बातचीत कर कुछ समझाना चाहती है। शोकाकुल कवयित्री (माँ) भावावेश में इतनी असंयमित हो जाती है कि वह अपने मृत बेटा को संबोधित करते हुए यहाँ तक कहती है–अब तुम सदा मेरे पास रहो, मुझे छोड़ कर मत जाओ।
वस्तुतः कवयित्री ने अपने बेटे की मौत से उपजे दु:खिया माँ के शोकपूर्ण उद्गारों का स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। ऐसी युक्तियुक्तपूर्ण एवं मार्मिक प्रस्तुति अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी वर्मा की एक मार्मिक कविता इस प्रकार है, जो माँ की ममता को प्रतिबंधित करती है, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
Q 9.इस कविता को पढ़ने पर आपके मन पर क्या प्रभाव पड़ा, उसे लिखिए।
उत्तर-‘पुत्र वियोग’ कविता में कवयित्री ने अपने बेटा की मृत्यु तथा उससे उपज विवाद की अभिव्यक्ति की है। कवयित्री की विरह–वेदना, अतीत के पृष्ठों को उलटते हुए विगत की स्मृतियों को दुहराना पाठक के मन में करुणा विषाद की रेखा खींच देती है। उसकी (पाठक) की भावनाएँ कवयित्री (माँ) के शोकाकुल क्षणों में अपनी संवेदना प्रकट करती दिखती है।
मेरे मन में भी कुछ इसी प्रकार के मनोभावों का आना स्वाभाविक है। किसका ‘हृदय संवेदना से नहीं भर उठेगा? कौन कवयित्री के शोकोद्गारों की गहराई में गए बिना रहेगा।
एक माँ का अपने बेटे को दिन रात देखभाल करना बीमारी, ठंड आदि से रक्षा के लिए उसे गोदी में खेलाते रहना। स्वयं रात में जागकर उसे लोरी सुनाकर सुलाना ! अपने दाम्पत्य जीवन को खुशी को संतान पर केन्द्रित करना। अंत में नियति के क्रूर चक्र की चपेट में बेटा की मौत। इन सारे घटनाक्रमों से मैं मानसिक रूप से अशांत हो गया। मुझे ऐसा अहसास हुआ जैसे यह त्रासदी मेरे साथ हुई। कविता में कवयित्री ने अपनी सम्पूर्ण संवेदना को उड़ेल दिया है, करुणा उमड़ पड़ी तथा असहाय दर्द की अनुभूति होती है।
पुत्र वियोग भाषा की बात
Q 1.सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य–भाषा पर संक्षिपत टिप्पणी लिखें।
उत्तर-सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य–भाषा यथार्थनिष्ठा राष्ट्रीय भावधारा है। वे अपने समकालीन छायावादी काव्यधरा के समान्तर रूप से काव्य रचना करनेवाली राष्ट्रीय भावधारा की प्रमुख और विशिष्ट कवयित्र थी। उनकी इस भावधारा के मूल में सामाजिक, राजनीतिक यथार्थ की प्रेरणाएँ और आग्रह थे।
Q 2.कविता से सर्वनाम शब्दों को चुनें।
उत्तर-मेरा खोया हुआ खिलौना, अबतक न मेरे पास आया।
Q 3.‘मलिनता’ में ‘ता’ प्रत्यय है। ‘ता’ प्रत्यय के योग से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-मानवता, आवश्यकता, दानवता, मनुष्यता, सरलता।
Q 4.इनके विपरीतार्थक शब्द लिखें–
मलिनता, देव, असहाय, जटिल, नीरस, कठिन, विकल।
उत्तर-
- शब्द विपरीतार्थक
- मलिनता – स्वच्छता
- देव – दानव
- असहाय – समर्थ
- जटिल – सरल
- नीरस – सरस
- कठिन – सरल
- विकल – अविकल
Q 5.वाक्य प्रयोग द्वारा इन मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करें
(क) आँखों में रात बिताना
(खं) शीश नवाना
उत्तर-(क) आँखों में रात बिताना–(राज भर जागना)–माताएँ अपने बच्चों के लिए आँखों में रात बिता देती है।
(ख) शीश नवाना (आदर करना, प्रणाम करना)–मोहन ने अपने गुरु के सामने शीश नवाया।
Q 6.निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखें गोद, छौना, बहन, विश्व, दूध।।
उत्तर-
- शब्द समानार्थी शब्द
- गोद – अंक
- छौना – बालक, शावक
- बहन – भगिनी
- विश्व – जगत, संसार
- दूध – पय, सुधा
Q 7.‘उल्लास’ शब्द का सन्धि–विच्छेद्र करें।
उत्तर-उल्लास = उत् + लास
पुत्र वियोग कवि परिचय सुभद्रा कुमारी चौहान (1904–1948)
कवि परिचय– 16 अगस्त, 1904 को सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म निहालपुर, इलाहाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती धीराज कुँवरी और पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। सन् 1919 में इनका विवाह ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से खांडवा, मध्यप्रदेश में हुआ। लेखिका के पति अंग्रेजो सरकार द्वारा जब्त ‘कुली प्रथा और गुलामी का नशा’ नामक नाटकों के लेखक एक प्रसिद्ध पत्रकार, अच्छे स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के सक्रिय नेता थे।
लेखिका की आरम्भिक शिक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल, इलाहाबाद में हुई जहाँ इनके साथ प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा भी थीं। इसके पश्चात् वाराणसी में थियोसोफिकल स्कूल के नौवीं कक्षा के बाद अधूरी शिक्षा छोड़ कर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़ी। छात्र जीवन से ही इन्हें काव्य रचना की भी अभिरूचि थी। आगे चलकर एक अच्छी कवयित्री एवं साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठा. भी पायौं।
लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान अपने जीवनकाल में समाज सेवा, स्वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भागीदारी, राजनीति करते हुए अनेक बार कारावास भी गयीं। अन्त में मध्यप्रदेश के एक विधानसभा में एम. एल. ए. बनकर अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन और जागरण में सक्रिय भूमिका निभाते हुए वसंत पंचमी के दिन इस संसार से “नवश्रृजन के महापर्व” करके चल पड़ी।
इनके जीवन का महामंत्र था। स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व होम करना, इतना ही नहीं, मुक्तिबोध ने तो कहा है “सुभद्रा जी के साहित्य में अपने युग के मूल उद्वेग, उसके भिन्न–भिन्न रूप, अपनी आभरणहीन शैली में प्रकट हुए हैं।”
सुभद्रा कुमारी चौहान की निम्नलिखित रचनायें ‘मुकुल’ (कविता संग्रह), ‘त्रिधारा’ (कविता चयन) बिखरे मोती (कहानी संग्रह) सभा के खेल (कहानी संग्रह) प्रमुख हैं।
पुत्र वियोग कविता का सारांश
अपने पुत्र के असामयिक निधन के बाद माँ द्वारा व्यक्त की हुई उसके अन्दर की व्यथा का इस कविता में सफल निरूपण हुआ। कवयित्री माँ अपने पुत्र–वियोग में अत्यन्त भावुक हो उठती है। उसकी अन्तर्चेतना को पुत्र का अचानक बिछोह झकझोर देता है। प्रस्तुत कविता में पुत्र के अप्रत्याशित रूप से असनय निधन से माँ के हृदय में अपने संताप का हृदय–विदारक चित्रण है। एक माँ के विषादमय शोक का एक साथ धीरे–धीरे गहराता और क्रमशः ऊपर की ओर आरोहण करता भाव उत्कंठा अर्जित करता जाता है तथा कविता के अन्तिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच माँ–बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म–प्रतीति में स्थायी परिवर्तित करता है। यह माँ की ममता की अभिव्यक्ति का चरमोत्कर्ष है।…
कवयित्री अपने पुत्र असामयिक निधन से अत्यन्त विकल है। उसे लगता है कि उसका प्रिय खिलौना खो गया है। उसने अपने बेटे के लिए सब प्रकार के कष्ट उठाए, पीड़ाएँ झेली। उसे कुछ हो न जाय, इसलिए हमेशा उसे गोद में लिए रहती थी। उसे सुलाने के लिए लोरियाँ गाकर तथा थपकी देकर सुलाया करती थी। मन्दिर में पूजा–अर्चना किया, मिन्नतें माँगी, फिर भी वह अपने बेटे को काल के गाल से नहीं बचा सकी। वह विवश है। नियति के आगे किसी का वश नहीं चलता।
कवयित्री की एकमात्र इच्छा यही है कि पलभर के लिए भी उसका बेटा उसके पास आ जाए अथवा कोई व्यक्ति उसे लाकर उससे मिला दे। कवयित्री उसे अपने सीने से चिपका लेती है तथा उसका सिर सहला–सहलाकर उसे समझाती है। कवयित्री की संवेदना उत्कर्ष पर पहुँच जाती है, शोक सागर में डूबती–उतराती बिछोह की पीड़ा असह्य है। वह बेटा से कहती है कि भविष्य में वह उसे छोड़कर कभी नहीं जाए। अपने मृत बेटे को उक्त बातें कहना उसकी असामान्य मनोदशा का परिचायक है। संभवतः उसने अपनी जीवित सन्तान को उक्त बातें कही हों।
सुभद्रा के प्रतिनिध काव्य संकलन ‘मुकुल’ से ली गई। प्रस्तुत कविता, ‘पुत्र–वियोग’ कवयित्री माँ के द्वारा लिखी गई है तथा निराला की ‘सरोज–स्मृति’ के बाद हिन्दी में एक दूसरा
“शोकगीत” है।
पुत्र के असमय निधन के बाद तड़पते रह गए माँ के हृदय के दारूण शोक की ऐसी सादगी भरी अभिव्यक्ति है जो निर्वैयक्तिक और सार्वभौम होकर अमिट रूप में काव्यत्व अर्जित कर लेती है। उसमें एक माँ के विवादमय शोक का एक साथ धीरे–धीरे गहराता और ऊपर–ऊपर आरोहण करता हुआ भाव उत्कटता अर्जन करता जाता है तथा कविता के अन्तिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच माँ–बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म–प्रतीति में स्थायी परिणति पाता है।
कविता का भावार्थ
आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया,
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया।
शीत न लग जाए,
इस भय से नहीं गोद से
जिसे उतारा छोड़ काम दौड़ कर आई
‘मा’ कहकर जिस समय पुकारा (पृष्ठ 195)
प्रसंग–प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध कवयित्री ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ द्वारा रचित उनकी कविता ‘पुत्र वियोग’ से उद्धृत है जो उनके प्रतिनिधि काव्य संकलन ‘मुकुल’ में संकलित है। कवयित्री की यह रचना एक शोकगीति है।
यह शोकगीति पुत्र के असामयिक निधन के बाद कवयित्री माँ द्वारा लिखा गया है, जिसमें पुत्र–निधन के बाद पीछे तड़पते रह गए माँ के हृदय के दारुण शोक की मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह विषादमय शोक गहरा होता हुआ भाव उत्कटता प्राप्त करता जाता है।
व्याख्या–पुत्र की असामयिक मृत्यु से शोक विह्वल माँ अपने शोक संतप्त भावों को प्रकट करते हुए कहती है कि आज जब चारों ओर खुशी का वातावरण है और सारे संसार में खुशियाँ छाई हैं ऐसे में एक दुखी माँ के लिए ये सारी खुशियाँ बेकार हैं। मेरा पुत्र असमय मृत्यु को प्राप्त कर चुका है। मैं उसके इंतजार में दुखी बैठी हूँ। मेरा खोया पुत्र मेरे पास नहीं है।
फिर वह अपने मृत पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मैंने अपने पुत्र को सर्दी, गर्मी, बरसात तथा हर दुख से बचाने का प्रयास किया था। मेरे प्रिय पुत्र को सर्दी न लगे, वह बीमार न पड़े, इसलिए मैंने उसे गोद से जमीन पर नहीं उतरने दिया। उसने जब भी माँ कहते हुए मुझे आवाज लगाई मैं अपना सारा काम–काज छोड़कर उसके पास दौड़कर आई, ताकि उसकी जरूरतें पूरी कर सकूँ।
विशेष–
- पुत्र वियोग में दुखी माँ को उल्लासपूर्ण वातावरण भी उल्लसित नहीं कर पा रहा है।
- माँ अपने पुत्र के हर दुःख में उसका ध्यान रखती है, यह भाव व्यक्त हुआ है।
- माँ ने अपने पुत्र को खिलौना कहकर मार्मिकता बढ़ा दी है।
- ‘हँसती हैं’ में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा सहज तथा भावाभिव्यक्त करने में सक्षम है।
- छंदबद्ध काव्यांश में करुण रस घनीभूत हुआ है।
2. थपकी दे दे जिसे सुलायी
जिसके लिए लोरियाँ गाईं,
जिसके मुख पर जरा मलिनता
देख आँख में रात बिताई।
जिसके लिए भूल अपनापन
पत्थर को भी देव बनाया
कहीं नारियल, दूध, बताशे
कहीं चढ़ाकर शीश नवाया।
प्रसंग–पूर्ववत्। माँ अपने पुत्र से असीम प्यार करती हैं। वह अपने पुत्र को जरा सी तकलीफ में देखकर परेशान हो जाती है। उसकी परेशानी दूर करने के लिए वह तरह–तरह के उपाय करती है। कवयित्री भी अपने पुत्र के साथ किए गए प्यार भरे व्यवहार को याद कर उठती है। उसे वे सारी बातें एक–एक कर याद आने लगती हैं।
व्याख्या–कवयित्री कहती हैं कि उसने अपने प्रिय पुत्र के हर दुख–सुख का ख्याल रखा। उसने उसे प्यार से थपकियाँ देकर सुलाने की कोशिश की। उसे सुलाने के लिए मीठी–मीठी लोरियाँ सुनाईं, जिससे वह सो जाए। अपने पुत्र के चेहरे की चमक फीकी देखकर या उसकी उदासी महसूस कर उसने रात–रात भर जागकर उसका ख्याल रखा।
भलाई और सुख के लिए वह अपना सब कुछ भूल गई। उसे अपना सुख–दुख याद न रहा। इस कारण उसने पत्थर को देवता मानकर उसकी विधिवत् पूजा–अर्चना की। उसने इन देवों की पूजा करते हुए कहीं नारियल, दूध और बताशे चढ़ाए तो कहीं देवालयों में अपने पुत्र की भलाई की कामना करते हुए देवों को प्रणाम किया।
विशेष–
- माँ अपनी संतान की भलाई के लिए नाना प्रकार के कष्ट उठाती हैं, यह भाव व्यक्त हुआ है।
- लोरियाँ गाकर बच्चों को सुलाने की प्राचीन परंपरा का वर्णन किया गया है। (iii) दे दे’ में पुनरुक्ति प्रकाश तथा “लिए लोरियाँ’ में अनुप्रास अलंकार है।
- आँखों में रात बिताना’ ‘पत्थर को देव बनाना’ तथा ‘शीश नवाना’ आदि मुहावरों का उपयुक्त प्रयोग किया गया है।
- भाषा सहज, सरल तथा भावों को व्यक्त करने में सक्षम है, जिससे काव्यांश मर्म को छू जाता है।
- काव्यांश छंदबद्ध तुकांत शैली में है।
3. फिर भी कोई कुछ न कर सका
छिन ही गया खिलौना मेरा
मैं असहाय विवश बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा।
तड़प रहे हैं विकल प्राण ये
मुझको पल भर शान्ति नहीं है
वह खोया धन पर न सकूँगी
इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है।
प्रसंग–पूर्ववत्। कवयित्री ने अपने पुत्र की हर तरह से देखभाल की। उसकी सलामती के लिए पूजा–अर्चना करते हुए देवताओं के सम्मुख सिर झुकाकर दुआएँ भी माँगी, पर मृत्यु के आगे कोई कुछ नहीं कर सका है।
व्याख्या–कवयित्री कहती है कि उसके द्वारा की गई पूजा–अर्चना और माँगी गई दुआएँ भी उसके पुत्र को नहीं बचा सकी। कोई कुछ भी नहीं कर सका और उसका पुत्र असमय मृत्यु को प्राप्त हो गया। एक माँ का खिलौना उससे छिन गया और वह असहाय तथा विवश होकर बैठी रह गई। सकी आँखों से सामने ही उसका प्यारा पुत्र भगवान को प्यार हो गया।
पुत्र वियोग में तड़पती माँ कहती है कि इस असह्य कष्ट को उसका हृदयं तड़प–तड़पकर सह रहा है। उसे पुत्र की मृत्यु के बाद से पल भर के लिए शान्ति नहीं मिल सकी है। एक विवश माँ यह भी जानती है कि उसका जो अनमोल धन (पुत्र) खो गया है, उसे वह वापस नहीं पा सकती है। इस बात में जरा भी संदेह की गुजाइश नहीं है।
विशेष–
- मृत्यु एक अटल सत्य है और इसे नकारा नहीं जा सकता है यह भाव व्यक्त किया गया है।
- पुत्र वियोग में व्याकुल एक माँ के हृदय की पीड़ा का हृदय–स्पर्शी चित्रण है।
- ‘कोई कुछ न कर सका’ में अनुप्रास अलंकार है।
- पुत्र के लिए ‘खिलौना’, ‘छौना’, ‘धन’ आदि उपमों के प्रयोग से भाषा–सौन्दर्य में वृद्धि हुई है
- छंदबद्ध काव्यांश में करुण रस की उद्भावना हुई है।
- भाषा सरल, सहज, हृदयस्पर्शी, तत्सम शब्दों से युक्त तथा भावों को अभिव्यक्त करने में सफल है।.
4. फिर भी रोता ही रहता है
नहीं मानता है मन मेरा
बड़ा जटिल नीरस लगता है
सूना सूना जीवन मेरा।
यह लगता है एक बार यदि
पल भर को उसको पा जाती
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती।
प्रसंग–पूर्ववत्।
एक माँ यह बात अच्छी तरह जानती है कि मृत्यु पर किसी का वश नहीं चलता है। मृत्यु को किसी से मोह नहीं होता और जो उसके मुँह में चला गया, वह कभी लौटकर नहीं आता है। किन्तु एक माँ अपने मृत बेटे को कभी भूल नहीं पाती है। वह पुत्र वियोग में सदा तड़पती रहती है।
व्याख्या–अपने पुत्र की असामयिक मृत्यु से दुखी कवयित्री कहती है कि यह जानकर भी कि जो मर गया उसे वापस नहीं पाया जा सकता है। फिर भी उसका पुत्र के लिए रोता ही रहता है। किसी तरह से समझाने पर भी वह नहीं मानता है। पुत्र की मृत्यु के उपरांत उसके जीवन में खुशियाँ नहीं बची हैं। उसका जीवन कठिन और सूना–सूना हो गया है।
कवयित्री सोचती है कि यदि वह अपने खोए (मरे हुए) पुत्र को एक बार फिर से पा जाती, तो उसे जी–भरकर प्यार करती और अपने हृदय से लगा लेती। वह अपने पुत्र का सिर बार–बार सहलाती है और उसे समझाती कि वह अपनी मां को छोड़कर दूर न जाए।
विशेष–
- पुत्र वियोग में तड़पती माँ के शोकाकुल हृदय (मन) की पीड़ा का हृदयस्पर्शी वर्णन है।
- माँ का जीवन उसके पुत्र के लिए बिना कितना सूना हो जाता है, यह भाव व्यक्त हुआ है।
- माँ अपने पुत्र को पुनः पाना तथा प्यार करना चाहती है। इसे असंभव जानते हुए भी माँ की ममता इसे संभव बना लेना चाहती है।
- ‘मानता है मेरा मन’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘सूना–सूना’ एवं ‘सहला–सहला’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- काव्यांश छंदबद्ध एवं तुकांतयुक्त है, जिसमें करुण रस घनीभूत है।
- भाषा सरल, सहज तथा भावाभिव्यक्ति में पूर्णतया समर्थ है।
5. मेरे भैया मेरे बेटे अब
माँ को यों छोड़ न जाना
बड़ा कठिन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना।
भाई–बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलावे
किन्तु रात–दिन की साथिन माँ
कैसे अपना मन समझावे ! (पृष्ठ 196)
प्रसंग–पूर्ववत्।
माँ अपने पुत्र की मृत्यु से बहुत दुखी है। उसका जीवन सूना–सूना हो गया है। वह अपने मृत पुत्र को पुनः पाना चाहती है। वह उसे समझाना चाहती है कि वह अपनी माँ को छोड़कर. कहीं भी न जाए।
व्याख्या–पुत्र वियोग में शोक–संतप्त माँ सोचती है कि यदि उसका पुत्र उसे पुनः मिल जाए तो वह उसे समझाएगी कि मेरे प्रिय पुत्र, मेरे भैया (बेटा) ! अब तुम अपनी माँ को छोड़कर इस तरह मत जाना, जैसे तुम अब चले गए थे। एक माँ से बेटे का यूँ बिछुड़कर दूर चले जाना ही उसके लिए सबसे बड़ा दुख है। अपने दुखी मन को सांत्वना देना और समझाना उसके (माँ के) लिए बड़ा ही कठिन होता है।
पुत्र वियोग में व्याकुल माँ कहती है कि हे बेटा ! तुम्हारे भाई–बहन तथा पिता भले ही तुम्हें. कुछ समय बाद भूल जाएँ, पर माँ तो अपने पुत्र की दिन–रात अर्थात् हर समय की साथिन होती है। वह उसे अपने गर्भ में पालती–पोसती है। उसे अपने साथ लिए हुए घूमती है। इसलिए वह उसे अपने मन को कैसे. और क्या समझाकर अपना दुख कम करे।
विशेष–
- काव्याश में एक माँ की वेदना का हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक वर्णन है।.
- माँ और बेटे के बीच ममता का अटूट रिश्ता होता है। यह रिश्ता माँ को अपने पुत्र की याद दिलाता है, यह भाव व्यक्त हुआ है।
- काव्यांश में करुण रस व्याप्त है।
- भाषा सरल, सहज, बोधगम्य, मर्मस्पर्शी तथा भावों को व्यक्त करने में समर्थ है।।
- काव्यांश छंदबद्ध तथा तुकांत युक्त है, जिसमें ‘रात–दिन की साथिन’ लोकोक्ति का अत्यन्त सुन्दर प्रयोग किया गया है।
- अन्तिम पंक्तियों में मानवीय रिश्तों का मर्म छिपा हुआ है।